भगवन श्री राम तुरंत ही पंचवटी पहुंच गए वह उनको गृध्राज जटायु मिला उसके साथ पर्णकुटी बना कर श्री राम रहने लगे जब से श्री राम जी ने वह निवास किया तब से सब सुखी हो गए, सबका डर खत्म हो गया एक बार श्री राम बैठे हुए थे लक्ष्मण जी ने आकर श्री राम से एक सवाल किया हे प्रभु आप कैसे इतना दया करते है और आप इतना दयालु कैसे है, और कैसे अपने बहकतो के वश हो जाते हैI तो श्री राम ने कहा हे लक्ष्मण सुनो इस दुनिया को मई, मेरा तू और तेरा ने अपने वस में कर रखा है, मेरा गुण गाते समय जिसका शरीर पुलकित हो जाये, और नेत्रो से प्रेमाश्रुओं का जल भरने लगे, और काम मध और दम्भ जिसमें न हो हे भाई मैं सदा उसके वश में रहता I इन बातो को सुनकर लक्ष्मण जी ने अत्यन्त खुश हो गये, इसी प्रकार खुशी खुसी रहते रहते कुछ दिन निकल गया I एक दिन शूर्पणखा नामक रावण की एक बहन थी, जो नागिन के सामान भयानक और दुष्ट थी, वह एक बार पंचवटी में गयी और दोनों राजकुमारों को देखकर विकल काम से पीड़ित हो गयी, वह सुन्दर रुप बनाकर प्रभु के पास जाकर और मुस्कुराकर वचन बोली - न तो तुम्हारे समान कोई पुरुष है, और ना मेरे समान कोई स्त्री है, विधाता ने यह संयोग बहुत विचारकर रचा है I मेरे योग्य पुरुष जगत भर में नहीं यही है, मैंने तीनो लोको को देख लिया, इसी से मैं अब तक कुंवारी हु, लेकिन अब तुमको देख कर कुछ मन आया, तब श्री राम ने सीता की तरफ देखा और कहा मैं शादी शुदा हु, लेकिन मेरा भाई कुंवारा है, उसने जाकर फिर लक्ष्मण जी से पूछा तो उन्होंने कहा वह श्री राम है और और राजा भी है, उनको यह सब सोभा देता है मैं तो उनका दास हु, और मुझे यह शोभा भी नहीं देता तुम जाओ और उनसे ही अपनी शादी की बात करो, फिर वो श्री राम के पास जे गयी फिर प्रभु श्री राम ने वही बात कहकर लौटा दिया, फिर लक्ष्मण जी के पास गयी तो लक्ष्मण जी ने कहा तुमसे तो वही शादी करेगा जो तुम्हारी तरह निर्लज होगायह सुनकर वह क्रुद्ध हो गयी और गुस्से में श्री राम के पास भयानक रूप धर कर गयी जिसे देख सीता जी डर गयी ये देखते ही की सीता जी डर रही है श्री राम ने लक्ष्मण जी को इशारा किया इशारे को तुरंत समझकर उन्होंने उसका नाक और कान काट दिया, जैसे उन्होंने उसी के द्वारा रावण को चुनैती भेजा है, अब वह बिफर पडी और रट हुए अपने भाई खरदूषण के पास पहुंच गयी और उससे ना ना प्रकार से श्री राम और लक्ष्मण जी की शिकायत करने लगी और साथ ही साथ कहती है तुम्हारे जैसे भाई का होना और ना होना एक बराबर है, धिकार है तुम्हारे ताकत का धिकार है तुम जैसे भाई के होने से भी, तुम्हारे जैसे भाई का होने से अच्छा है की बिना भाई के रहना, यह सुनने के बाद खरदूषण अपनी राक्षस सेना लेकर चल पड़ा उसने नाक कान कटी सूर्पनखा को आगे कर लिया और भाति भाति के खतरनाक अस्त्रों से सुसजित होकर निकला, कोई राक्षस कहता है की दोनों को खा जाओ कोई कहता है की दोनों को मार डालो कोई कहता है बंदी बना लो और बहुत तेजी से श्री राम की तरफ बढे आ रहे है जिसे भापकर श्री राम ने लक्ष्मण को सीता को गुफा में छुपाने को कहा यह सुनते ही श्री लक्ष्मण जी सीता को गुफा में छुपाने ले गए इधर सारे राक्षसों ने श्री राम को चारो और से घेर लिया, खरदूषण कहता है तुम दोनों तो सुकुमार बालक हो और मारने लायक नहीं हेो, तुम एक काम करो वह सुन्दर स्त्री मेरे हवाले कर दो वह श्री राम जुडा बांधे और धनुष को ताने राक्षसों के समूह में ऐसे लग रहे है जैसे मतवाले हाथी के झुण्ड को कोई शेर देख रहा हो, खरदूषण के बात सुनते ही श्री राम ने कहा हम क्षत्रिय है, मरने और दुष्ट जानवरों के खाल उतारने से नहीं डरते, और मुनियों का रक्षा करना हमारा धर्म है, हम बालक है और दुष्टों को दण्ड देने वाले है, यदि बल ना हो तो अपने घर लौट जाओ, मैं संग्राम में पीठ दिखाने वाले को नहीं मारता, रन में आके शत्रु को मारना छोड़कर उसपर दया दिखाना कायरता है, यह सुनते ही खरदूषण का ह्रदय जल उठा, तब खरदूषण ने कहा पकड़ लो कैद कर लो, यह सुनकर सभी राक्षस अनेको प्रकार के अस्त्र लेकर दौड़े पर श्री राम जी ने बाण साधकर ऐसा टंकार किया की सारे राक्षस बहरे और ब्याकुल हो गए, उस समय उन्हें कुछ भी समझ नहीं आ रहा था, फिर श्री राम को बलवान जानकर सावधान हो कर दौड़े और अनेको प्रकार के अस्त्र सस्त्र से वार करने लगे, शरीर राम ने गाजर मूली की तरह दुश्मनो को अपने तीर से काटना शुरु किया पर शारीर के अंग काटनेके बाद भी माया के सहारे ऊठ के फिर लड़ने लगते है, और कौतुहल मचाते है, सारे राक्षस परेशान होकर भगनेलगते है पर खरदूषण और उसके भाई त्रिशिरा कहत है की जो भागेगा उसका बद्ध हम अपनी हाथो से करेंगे अब क्या कर सकते थे बेचारे इधर कुवा और उधर खाई वाली हालत पैदा हो गया सो सभी फिर से मुड़े और लड़ने लगे , यह सब देख के सारे देवता गण घबरा गे और सोचते है की, प्रभु एक है और दुश्मन चौदह हजार, सब देवता गण परेशान हो उठे इसी वक्त श्री राम ने एक माया रचा जिससे सारे दुसमन एक दूसरे को राम समझने लगे और एक दूसरे को काटने मारने लगे सब कहने लगे यही राम है मरो इसको मारो। सब राम राम कह कर मरनेलगे और उनका प्रभु ने उद्धार भी कर दिया क्युकी सब के मुंह से चाहे जैसे भी हो राम निकल रहा था, इधर सूर्पनखा अपने भाई खरदूषण और त्रिशिरा का वध देखकर भाग गयी रावण के पास तब लक्ष्मण जी माता सीता जी को लेकर और उनका पैर छुवा फिर सीता जी ने भी उनका पैर छुया और एकटक देखती है। तभी देवता फूल बरसाना सुरु करते है। उधर सूर्पनखा रावण के पास जाकर सारा हल कह सुनाती है, खरदूषण और त्रिशिरा दोनों भाइयो का वध का समाचार सुनके रावण आगा बबूला हो उठता है, सूर्पनखा श्री राम के साथ सात सुन्दर स्त्री भी है का जिक्र करती है। और कहते है की उनके प्रभाव से अब तो मुनि भी निर्भय हिकर घूमने लगे है। वे देखने में तो बालक के समान है पर है काल के समान दोनों भाइयो का बल अतुलनीय है।
उसने बहुत प्रकार से अपनी बहन को समझाया और अपने बल की तारीफ़ किया और सोने अपने कक्ष में चला गया पर रात भर नींद नहीं आयी, वह सोचने लगा देवता,मनुष्य, असुर , नाग, और पक्षियों में ऐसा कोई नहीं है जो म,मेरे सेवक को भी पा सके और खरदूषण और त्रिशिरा यो मेरे समान बलवान थे , उन्हें भगवान के सिवा और कौन मार सकता है।
अगर देवताओ को आनद देनेवाले और पृथ्वी का भार हरण करने वाले भगवान ने ही यदि अवतार लिया है तो मई जाकर हठ पुरवक उनसे वैर करूंगा और उनके हाथो मरकर भवसागर से तर जाऊंगा। इस तामस सरीर से भजन तो होगा नहीं, अतः मन से मई यही प्रतिज्ञा करता हु, और अगर कोई वे दोनों आम बालक हहोबगे तो उनकी स्त्री को हर लूंगा।
इधर प्रभु ने अकेले में सीता जी से कहते है , हे सुन्दर पतिव्रत का धारण करने वाली शुशील, सुनो मैं अब मनोहर मनुष्य का लीला करूंगा। इस लिए जबतक मैं राक्षसों का वध करू तब तक तुम अग्नि में निवास करो, ज्यो ही सीताजी ने यह सूना प्रभु का चरण अपने ह्रदय में रखा और अग्नि में समां गयी और पर अपनी ही छाया मूर्ति रख दिया, जो प्रकार से उन्ही की तरह थी। भगवान जो भी यह लिला किया यह रहस्य लक्ष्मण जी भी ना जान सके।
उधर रावण समुद्र किनारे रहने वाले अपने मामा मारीच के पास अकेले ही जा पहुंचा और उससे से अपनी सारी बात बताया। तब मारीच ने कहा हे रावण सुनिए वे पभु श्री राम है उन्ही के मारने से इंसान मरता है और उन्ही के जन्म देने से इंसान मरता है आप उनसे वैर ना कीजिए , यही राजकुमार विश्वामित्र के यज्ञ की रक्षा के लिए गए थे और बिना फल वाले बाण से मुझे मारा था , जिससे मैं क्षण बाहर में सौ योजन दूर आ गिरा था , उनसे वैर में भलाई नही है, फिर उसने सारे राक्षसों के वध की कहानी सुनाई और कहा की उनसे वैर ना लो, और अपने कुल की कुशल विचारकर आप अपने घर लौट जाइये , इतना सुनते ही रावण आग बबूला हो उठा और उसे मारने की धमकी दिया तब मारीच ने सोचा इसके हाथो मरे इससे अच्छा हिल प्रभु के हाथ क्यों ना मरे। ह्रदय में यही सोचकर वह रावण के साथ हो लिया।
इधर प्रभु ने अकेले में सीता जी से कहते है , हे सुन्दर पतिव्रत का धारण करने वाली शुशील, सुनो मैं अब मनोहर मनुष्य का लीला करूंगा। इस लिए जबतक मैं राक्षसों का वध करू तब तक तुम अग्नि में निवास करो, ज्यो ही सीताजी ने यह सूना प्रभु का चरण अपने ह्रदय में रखा और अग्नि में समां गयी और पर अपनी ही छाया मूर्ति रख दिया, जो प्रकार से उन्ही की तरह थी। भगवान जो भी यह लिला किया यह रहस्य लक्ष्मण जी भी ना जान सके।
उधर रावण समुद्र किनारे रहने वाले अपने मामा मारीच के पास अकेले ही जा पहुंचा और उससे से अपनी सारी बात बताया। तब मारीच ने कहा हे रावण सुनिए वे पभु श्री राम है उन्ही के मारने से इंसान मरता है और उन्ही के जन्म देने से इंसान मरता है आप उनसे वैर ना कीजिए , यही राजकुमार विश्वामित्र के यज्ञ की रक्षा के लिए गए थे और बिना फल वाले बाण से मुझे मारा था , जिससे मैं क्षण बाहर में सौ योजन दूर आ गिरा था , उनसे वैर में भलाई नही है, फिर उसने सारे राक्षसों के वध की कहानी सुनाई और कहा की उनसे वैर ना लो, और अपने कुल की कुशल विचारकर आप अपने घर लौट जाइये , इतना सुनते ही रावण आग बबूला हो उठा और उसे मारने की धमकी दिया तब मारीच ने सोचा इसके हाथो मरे इससे अच्छा हिल प्रभु के हाथ क्यों ना मरे। ह्रदय में यही सोचकर वह रावण के साथ हो लिया।
अगला भाग"सीता हरण "
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