Friday, 1 April 2016
राम वनवास
इधर सारे देवतागण आकर माता सरस्वती से विनती करते है और कहते हि की हे माता राम को वन भेजिये ताकी इस द्दुनिया का जल्द उधार हो सके, माता बडे सोच मे पड जाती है की ऐसी असुभ कार्य मुझसे क्यु करवाया जा रहा है, लेकिन देवताओ का आग्रह और पृथ्वी का कल्याण समझकर माता तैयार हो जाती है,मंथरा नाम की केकैइ की दासी थी जिसकी बुद्धी घुमाकर माता चली गयी, मंथरा मन्दबुद्धी थी, वह भरत के माता के पास गयी और केकैइ की बार बार पुछने पर भी कुछ नही बोलती है और जला सा मुह करके खडी रहती है, यह देखकर रानी डर जाते है और कहती है की तु कुछ बोलते क्यु नही चारो भाइ कुशल तो है, इस पर बोलती है की राम्को छोड्कर और किसका कुशल है, राम राजा बनने वाले है आज जाकर कौसल्या देखो कितना खुश है और तुम्हारा भरत परदेश है, जानती हो जी स्वामी तुम्हारे वश मे है, मन्थरा के ये बात सुनकर रानी उसे डाटती है और कहती है की अब चुप होजा पागल कही की, फिर ऐसा कहा तो तेरा जीभ निकलवा दुंगी, मंथरा तुम्हारे कहने से मुझे दुख नही है मै तुझे बताती हु देख बडा भाइ स्वामी और छोटा भाइ सेवक होता है, तुझे जो अच्छा लगे मांगले तुझे मिलेगा यह सुभ अवसर बार बार नही आती, छल कपट छोड और अछी बाते कर तो मंथरा कहती है जो देखा वो मैने कह दिया रानी मैने अब क्या बार बार मै यही कहती रही लेकीन हे रानी मैने जो कहा सही कहा है आप एक बार विचार करके देखिये की मैने क्या गलत कहा, मेरा बात ही जलाने योग्य है हे रानी मैने कुछ गलत नही कहा लेकीन हे देवी गलत समझकर मुझे माफ कर दो, आप ही देखलो राम की माता कितनी चतुर है समय मिलते ही अओअना काम बना लिया और राम को राजा बना दिया आप ठहरी सिधी आप से ये काम होने वला कहा, केकैइ उसकी कडवी बाते सुनकर डर गयी और कुछ ना बोली फिर कपट के हजारो कहानी सुनाकर रानी को बहलाती है, फिर केकैइ ने कहा देख तेरी बात सही है मै प्रतिदिन रात को डरावने सपने देखा करती हु, मै जिते जी अपना जीवन अपने माइके जाकर काट लुंगी लेकीन कौशल्या की चाकरी नही करुंगी, मैने भी ज्योतिषीयो से पुछा तो उन्होने कहा की भरत ही राजा बनेंग, कुबरी ने सब प्रकार से कबुल करवाया कुबरीने याद दिलवाया की तुम्हारे दो वरदान अभी सुरक्षीत है आज उन्हे राजा से मांगकर अपना छाती ठंडा करो, अपने पुत्र को राज्य और राम को वनावास दो, उसने यह भी बोला की जब राजा राम का सौगन्ध खा ले तो अपनी बात कहना ताकी राजा अपनी बात ना टाल पाये क्यु की आज रात बीत जाने के बीत जाने के बाद कल कुछ नही होगा, मेरी बात को दिल से समझना, मंथरा ने जल्दी से दिमाग दिया की अभी कोप भवन मे जाओ और सब काम सही से करना, केकैइ ने कहा अगर मेरी मनोरथ पुरी हो गयी तो तुम मेरी आखो की पुतली बन जओगी यह कहकर वे कोपभवन मे चली गयीI
सुबह हुआ दिखे पर राजा नही दिखे तब सबको आश्चर्य हुआ की रोज सुबह होने से पहले ही राजा उठ जाते है पर आज नही क्या बात है उधर राम को युवराज बनाने की पुरी तैयारी चल रही थी, तब मंत्री को भेजा जाता है की जाकर देखे और रजा को लिवा लावे मंत्री जाते है तो देखकर दंग रह जाते है राजा बेहोश धरती पर पडे है और केकैइ वहा पर बैठी है, मंत्री ने पुछा की राजा को क्या हुआ और निचे क्यु पडे है, तो कहती है के बस कुछ नही हमे कुछ नही पता बस राम को ही बुलाते है जओ जाकर राम को बुला लाओ मुझे कुछ नही पता नही है, मंत्री चुपचाप वहा से निकलते है यह सोचते हुए की यह सब रानी का ही चाल है, जब दर्वाजे पर जाते है सब लोग पुछते है कहा है राजा तो सब समझाकर वे राम के पास जाते है और उन्हे बुलाते है राम उनके पिछे पिछे चले जाते है, राम अन्दर जाके उनसे पुछते है की हे माते क्या हुआ पर वो कुछ कहती नही है फिर राजा को देखते है राजा बेहोस पडे है फिर आग्रह करने पर वे बताती है कि कुछ नही बस मैने भरत के लिये राज्याभिषेक और आपके लिये वनवास मंग लिया बस इस लिये बेहोस पडे है, अगर नही दे सकते तो मना कर दे इस तरह गिरने की क्या बात है, अगर वचन नही रख सकते तो ना रखे, इतना वचन सुनकर राम ने कहा नही माता आपका दोनो वचन पुरा होगा भरत युवराज बनेंगे और मै वन भी जाउंगा, बहुत कम ही पुत्रो को ऐसा अवसर प्राप्त होता है की वे माता और पिता का कहना माने, तब तक राजा राम राम कहते हुए करवट बदलते है तो राम को चरण छुते हुए देखा, राजा ने राम को तुरंत ही गले लगाया और मना करते है की राम वन मत जाओ, ब्रह्मा और शंकर जी से प्रार्थना कर रहे है की भगवान कैसे भी रामको रोक लो, राम वहा से आज्ञा लेकर चले अपनी माता का आज्ञा लेने चले, यह बात राज्य मे जंगल की आग की तरह फैल गयी सब केकैइ को कोसने लगे,कोइ कहता की यह झुठ है, कोइ कहता है की इसमे भरत का हाथ है, राम जाकर माता का पैर छुकर आज्ञा लेते है माता रोती है और बार बार राम्का मुख देखती है और चुमती है, तब राम कहते है हे माता पिता ने म्झे वन का राज्य दिया है जहा मेरा बहुत कार्य है तु प्रसन मन से मुझे विदा दे, और तु कभी डरना मत मेरे साथ सब कुछ अछा होगा, पर माता कुछ कह नही पाती और चुप रहती है वो सोचती है की अगर रोकती हु तो धर्म का हानी होगा और जाने की आज्ञा देती हु तो बहुत अधिक हानी होगा फिर इस फुल जैसी सीता का क्या होगा क्या ये भी राम के साथ जायेंगी फिर सभी प्रकार से विचार कर के पती धर्म को अपनाते हुए जाने का आज्ञा देती है, पर सीता को कहती है की तुम यही रहो पर उनके हठ के आगे वे कुछ नही कर पाती राम से बताते है की हे राम सीता भी तुम्हारे साथ जाना चाहती है फिर राम ने बहुत प्रकार से सीता को समझाया की आप यहा रह्कर सास और ससुर का सेवा किजिये पर सीता कुछ न कहती है बस चुप चाप धरती को देखती है तब श्री राम ने कहा हे प्रिये जओ तुरंत वन जाने कि तैयारी करो, सीता तुरंत तैयार होके आती है, और रामके साथ चलने को, जब ये बात बात लक्षमण को पता चलता है तो वे आकर रास्ते पर आकर शिश नवाकर खडे हो जाते है और ये सोचते है की पता नही भैया मुझे अपने साथले जायेंगे या नही, रामुन्हे देखते ही कह्ते है हे लक्षमण तुम जओ अभी पिता और प्रजा की सेवा करो अभी पिता का वृधावस्था है और माताओ का सेवा करो अभी तो यहा पर भरथ और शत्रुध्न भी नहि है अतः तुम्ही हो जो राज्य की देखभाल करने वाले हो, यह सुनकर लक्षमण ने कहा हे प्रभु आप ही मेरे सबकुछ है, मा है पिता है भाइ है सबकुछ आप हि है आप मुझे अपने साथ ले चले, यह जवाब सुनकर राम ने कहा जओ माता से आशिर्वाद लेकर तुरंत आओ यह सुनते हि लक्षमण माता के पास गये और पुरी बात कह सुनाइ माताको जान कर बहुत दुख हुआ, पर माता ने देखा की राम के साथ लक्षँमण का जाना ही उचीत है तो उन्होने लक्षमण को सब प्रकार की शिक्षाये दी और कहा तुम रोज वही कार्य करना जिससे राम्को सीता को सब प्रकार से खुशी हो इस प्रकार शिक्षा देकर माता ने आदेश दिया जाने के लिये, इतना सुनते ही लक्षमण तुरंत माता को सिस नवाकर वहा से निकले ताकी कोइ और बाधा ना आ जाये, और जाकर माता सीता और भाइ से I
श्री राम चन्द्र जी पधारे है ऐसा कहकर मंत्री ने राजा दशरथ को उठाया, राजा दोनो पुत्रो और सीता को देखकर व्याकुल हो जाते है, तब राजा ने दोनो पुत्रो को गले लगाया और अपनी सभी तरह की चतुराई लगाया ताकी राम रुक जाये और वन ना जाये लेकीन भगवान ने तुरंत ही अपना सिर नवा कर आशिर्वाद उर आदेश मांगा पर स्नेह वश राजा कुछ बोल नही पाते, मंत्री सुमंत्र की पत्नी और गुरु वशिष्ठ की पत्नी दोनो सीता जी को समझाती है और कहती है की राजा ने तुम्हे वनवास नही दिया है तुम रुक जओ, युम मत जाओ पर सीता जी का ध्यान तो सिर्फ राम के चरणो मे ही था, शर्म से सीता जी कुछ उतर नही देती, राजा फिर मुर्छीत हो गये, राम ने वन का सारा सामान भाइ और सीता जी को साथ लेकर गुरु का आशीर्वाद लेकर निकल पडॆ, राम्ने सारे दस दासियो को बुलाकर उन्हे गुरु के हवाले करते हुये कहा की आप सब इनकी देखरेख माता पिता की तरह करे तो मुझे बहुत खुशी होगी, राम जाने से पह्ले से पह्ले सबसे हाथ जोड्कर यही विनती करते है की आप सब वही कार्य करे जिससे राजा को हर तरह से खुसी मिले, इस प्रकार राम जी ने सबको समझया और खुश होकर सबसे आशीर्वाद लेकर चलते है, राजमहल से निकलते ही सारे देवता लोग खुशी मनाते है, ये सोच के देवता लोग खुशी मनाते है की अब रावण का बुरे दिन ज्ल्द ही आने वाले है, श्री राम वन जा रहे है ये सोच कर सब अयोध्यावासी बुढो और बचो को घर छोडकर उनके साथ हो लिये, पहले दिन श्री राम जी ने तमसा नदी पर निवास किया और अयोध्या के लोगो के समझाना सुरु किया लेकिन वहा कोइ मनने वाला ना था यह देखकर रामको बहुत दुख हुआ, आधी रात को मंत्री को राम ने कहा की ऐसे रथ को हाकिये जैसे किसी को यह ना पता चल पाये की हम किस दिशा मे गये, सुबह हुआ राम ना पकर सब दुखी हुए पर अयोध्या लौटना ही पडा इसके अलावा और कोइ रास्ता भी ना था, भगवान गंगा नदी के किनारे पहुचे तो उतरकर कर दंडवत किया, तत्पश्चात लक्षमण और मंत्री ने भी गंगा जी को प्रणाम किया उसके बाद और मात सीता जी ने भी रथ से उतरकर गंगा से प्रणाम किया और सबने गंगा मे स्नान किया जिससे सब थकावट दुर हुआI
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