Friday, 1 April 2016
वनवास के बाद अयोध्या
सब केकैइ को दोष देते है और कहते है कि केकैइ ने पुरे संसार को अन्धा कर दिया है, तब मुनि वशिश्ठ ने अपने ज्ञान के प्रकाश से सबका दोश दुर किया, उन्होने नाव मे तेल भरवाकर राजा के शरीर को उसमे रखवा दिया, फिर दुतो को बुलाकर उन्हे भरत और शत्रुध्न को बुलाने भेजते है और उन्हे समझाते है की राजा के बारे मे दोनो भाइयो को कुछ ना कहना बस उनसे कहना आप दोनो को गुरु जी ने बुलाया है वे दोनो दौडे आयेंगे, दुतो ने मुनी का आज्ञा पाते ही दौडना सुरु किया और घोडो से भी तेज चाल से जाकर गुरु जी के आदेश को दोनो भाइ भारत और शत्रुध्न से बताया यह सुनते ही दोनो भाइ बडे तेजी से अपने घोडे लेकर चले, जब अयोध्या के द्वार पर पहुचे तो हर तरफ सन्नाटा देखकर वे घबरा गये और जल्द से जल्द राज महल की तरफ तेजि सेव बढे, ऐसी विप्पती सी देखकर उन्हे किसि से कुछ पुछने की भी हिम्मत नही होती वे और तेजी से घोडो को भगाते है, और राजमहल पहुच जाते है, राज महल पहुचकर देखा तो हर तरफ दुख ही दुख दिखायी दे रहा था, राजमहल का प्रत्येक व्यक्ती दुखी दिख रहा था सिवाए केकैइ के, दोनो पुत्रो को देखकर वे पुछती है की बताओ सब मेरे नैहर मे खैर तो है, भरत जी ने सब कुशल कह सुनाइ, फिर अपने कुल की कुशल पुछा उन्होने पुछा की मेरी सब माताए कहा है मेरी प्यारी भाभी सिताजी कहा है, मेरे भाइ श्री राम और लक्षमण कहा है, फिर उन्होने पुछा की पिता जी कहा है कही दिखते ही नही, यह सब सुनते ही केकैइ ने कहा की मैने सब बात बना दिया था, मंथरा ने ही युक्ती दी थी, बेचारी मंथरा ही सहायक सिद्ध हुइ जो इतनी अछी बुद्धी बताइ, यह कहकर उन्होने सारी बात बता दी, यह सुनते ही दोनो भाइ विलाप करने लगते है, माता को और ना ना प्रकार के चुभने वाले वचन बोलते है, और पृथ्वी पर गिर पडते है , वे यह कह कह कर भी विलाप करते है की मैने आपको स्वर्ग लोक जाते हुए भी नही देखा, आपने मुझे श्री राम को सौपा भी नही, फिर धीरज धरकर उन्होने पिता के मरने का कारण पुछा तो केकैइ ने सब खुशी खुशी बता दिया, माता कि कुट्ल्ता सुन कर सत्रुध्दन भी जल रहे है, तब तक उसी समय मंथरा सज धज कर और ना ना प्रकार का जेवर पहन कर मंथरा वहा आ पहुची, उसे देखते ही सत्रुध्दन ने उसे कुबड पर एक लात जमा दिया, इतने मे मंथरा मुह के बल गिरि और उसके मुह से खुन निकलने लगा, उसका कुबड टुट गया, कपाल फुट गया और दात भी टुट गये, मंथरा कहती है की बताओ मैने क्या है जो तुमने मुझे लात मारा एक तो तुम्हारे लिये इतना किया और तुमने हि मुझे लात मारा यह सुनते ही उसके झोटा पकडकर उसको घसिटना सुरु किया, तब दया-निधि भारत ने उन्हे छुडा दिया, उसके बाद कौशल्या जी के पास जाते है तो कौशल्या जी को देखकर वे भी व्याकुल हो जाते है कौशल्या जी ने मैले वश्त्र पहन रक्खा है, भरत को देखते ही माता दौड पडी पर चक्कर आने की वजह से वही मुर्छीत होकर गिर पडी, यह देखकर भरत जी शरीर का सुध खो बैठे और माता कौशल्या के चरणो मे जा गिरे, वे कहते है की हे माता आप मुझे पिता जी से मिलवा दिजिये बडे भाइ राम से मिल्वा दिजिये भाइ लक्षमण और माता जैसी भाभी सिता जी से मिल्वा दिजिये यह सुनते ही कौशल्या जी ने उन्हे गले लगा लिया, फिर बोलते है के इन सब कारणो का मै अकेला ही भागी हु मेरे वजह से कुल का नाश हुआ है, इस जगत केकैइ क्यु जन्मी और जन्मी भी तो बाझ क्यु ना हो गयी, पिता जी स्वर्ग मे है और श्री राम वन मे है सिर्फ मै ही यहा हु, यह सुनकर माता कौशल्या ने फिर भरत को गले लगा लिया और बोली हे भरत किसि को दोष मत दो, विधाता अब हर प्रकार से उल्टा हो गया है फिर भी मै जी रही हु पता नही मै जिन्दा हु, पिता की आज्ञा स्र श्री राम ने भुषण-वश्त्र त्याग दिये वल्कल-वश्त्र धारण किये, उनका मन प्रशन्न था और उन्हे किसि प्रकार का दुख ना था सब तरह से संतोष से वे वन गए है यह सब होते देख कर लक्षमण भी उनके साथ चले गये, फिर श्री राम ने सब को प्रडाम कर छोटे भाइ लक्षमण और सिता जी ज्के साथ वन चले गये, ये वचन सुनकर भरत जी फिए से व्याकौल हो उठे और विलाप करने लगे फिर कौशलया जी ने दोनो भाइयो को गले से लगा लिया, और उन्हे समझाने लगी, उसके बाद भरत जी ने सब माताओ को पुराणो और वेदो की बाते बताकर समझाया, उनकी ये सारे वचन सुनकर माता कौशल्या सुन कर कहती है की हे भरत तुम तो सचे मन से ही श्री राम के प्रिय हो, तुम श्री राम के प्राणो से भी प्यारे हो, ऐसा कहकर कौशल्या जी ने भरत जी को गले से लगा लिया I उनके स्तनो से दुध बह्ने लगा और आखो से पानी बहने लागा, इसि प्रकार सारी रात बित गयी I
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