Saturday, 2 April 2016

श्री राम और मुनि शरभंग्जी

       वन मे घुमते हुए श्री राम भाइ लक्षमण और माता सिता तिनो ही मुनी शरभंगजी के आश्रम जा पहुचे मुनी ने जब सुना की स्वयम् प्रभु श्री राम उनसे मिलने उनके आश्रम मे आये है, तो उनका खुशी का ठिकाना ना रहा, श्री राम से मिलने के बाद उन्होने कहा हे श्री राम मै ब्रह्मलोक को जा रहा था लेकिन, जब से मैने सुना है की प्रभु वन मे निकले है तब से मै आपका ही इंतेजार कर रहा हु, आज आपको देख कर मेरी छाती शीतल हो गयी, आगे उन्होने कहा हे प्रभु अब जब तक मै शरिर त्यागकर आपसे ना मिलु तब तक आप यही रहे, योग, यज्ञ, व्रत, तप जो कुछ भी मुनी ने किया था सब कुछ प्रभु को समर्पित कर दिया और बदले मे भक्ती का वरदान ले लिया, इस प्रकार मुनी ने अपना चिता सजाया और उस पर जा बैठे और और उन्होने कहा की श्री राम, लक्षम्ण जी और माता सिता जी आप मेरे हृदय मे निवास किजिये Ι
          ऐसा कहकर मुनी ने योगाग्नी से अपना शरीर जला डाला I मुनी की यह भक्ती देखकर बाकी के मुनिगण सुखी हुए बिना नही रहे, समस्त मुनीगण श्री राम की जय जय कर रहे है Ι फिर श्री राम आगे वन मे चले Ι उनके साथ पुरा मुनी समाज चला, आगे हडियो का समुह देखकर श्री राम को बहुत दया आया, और उन्होने मुनियो से पुछ लिया कि इसका कारण क्या है, यह सुन के मुनियो ने कहा हे श्री राम आप सब कुछ जनने वाले है और अंतर्यामी है फिर भी आप यह सवाल कर रहे है, रक्षसो के दल ने सब मुनियो को कह लिया यह सब हडिया मुनियो का है, यह सुन के श्री राम के आखो मे जल भर गया, श्री राम ने फिर हाथ उपर उठा कर प्रण किया की मै पुरी पृथ्वी को राक्षसो से मुक्त कर दुंगा, फिर श्री राम सब मुनियो के आश्रम जाकर उन सब अमुनियो को दर्शन देते है I
समाप्त

No comments:

INDIAN HINDU GOD WALLPAPER

Popular Posts

NAUKRI PATRIKA