जब रावण उस वन के पास पहुंचा जहां श्री राम रहते थे तो मारीच ने अपना भेष बदलकर एक स्वर्ण मृग बन आया जो दिखने में बहूत सुन्दर था। सीता ने जब उसको देखा तो उन्होंने श्री राम से उस मृग को मारकर उसकी चाल लाने की जिद किया , प्रभु सबकुछ जानते हुए भी उठ कर चल पड़े , उन्होंने हाथ में धनुष लेकर दिव्य बाण चढ़ाया और लक्ष्मण को सीता जी का बल और विवेक और समय का ज्ञान रखकर सीता का रखवाली करने को कहा , और उस मृग के पीछे हो लिए , पुरे विश्व के रखवाले श्री राम आज माया रूपी मृग के पिछे भाग रहे हैं। कभी वह नजदीक आता कभी दूर चला जाता , तब श्री राम ने कठोर बाण मारा जिससे वह वही पर गिर पड़ा और घोर शब्द किया पहले तो लक्ष्मण का नाम लिया फिर श्री राम का स्मरण किया। प्राण त्याग करते सामय उसने अपने असली रूप प्रकट किया और श्री राम का ध्यान किया , तो श्री राम ने उसे वह परम पद दिया जो मुनियों को भी दुर्लभ है। देवता गण बहुत से फूल बरसा रहे थे , और उनके गुणों की गाथाएं गए रहे है और कह रहे है उन्होंने तो असुर को भी परम पद देदिया। दुष्ट मारीच को मारकर पभु तुरंत लौट पड़े।
इधर जब सीता जी ने जब दुखभरी आवाज सूना तो मारीच के दुष्टता भरी आवाज "हा लक्ष्मण " तो भयभीत होकर लक्ष्मण जी से कहती है की तुम शीघ्र जाओ तुम्हारे भाई संकट में है , इसपार लक्ष्मण जी ने हसकर कहा हे माता भैया को कोई नहीं मार सकता, इसपर सीता जी ने कुछ चुभने वाले वचन बोले जिससे लक्ष्मण को जाना पड़ा लेकिन उन्होंने जाने से पहले लक्ष्मण रखा बना दिया कुटिया काे चारो तरफ और कहा चाहे कुछ भी हो जाए इस रेखा को पार मत करना , यह कहकर लक्ष्मण जी चले गए पर इधर रावण तो पहले से ही इसी मौके के इंतजार में बैठा था उधर लक्ष्मण जी निकले और रावण आ पंहुचा भिक्षा माँगने के बहाने और आकर भिक्षा मांगने लगा , तो माता सीता ने आकर भिक्षा देना चाह तो तो वह रेखा के अन्दर जाकर भिक्षा लेने से इंकार कर देता है , इसके पहले वह एकबार लक्ष्मण रेखा के अंदर जाइ की असफल कोसिस कर चुका था , रावण की बात सुनकर जो ही माता सीता ने बाहर निकली त्यों ही रावण ने माता सीता को अपने रथ में माता सीता को बैठा लिया और आकाश मार्ग से चल पड़ा , रास्ते में सीता जी रोती हुई जा रही है वे भागवान से विनती कर रही है औार कहती है की हे दूसरों की रक्षा करने वाले श्री राम आप मेरी रक्षा नहीं करा रहे है, वे कहती है की हे लक्ष्मण तुम्हारा भी दोष न था दोस तो मेरा है जो मैंने तुम्हे भेजा। इस तरह की सीता जी की विलाप सुनकर सारे जीव परेशान हो उठे माता सीता की विलाप सुनकर गृद्धराज जटायु ने पहचान लिया और आ गया रावण से लड़ने और माता सीता को बचाने , उसने ललकार कर कहा अरे दुष्ट खड़ा क्यों नहीं होता ? तूने मुझे क्यों नहीं जाना उसे आता देखकर रावण मन मन ही अनुमान लगाने लगा की यह कौन आ रहा है, उसने मन मन अनुमान लगाना सुरु किया यह या तो मैनाक पर्वत है या पक्षियों का स्वामी गरुण। पर वह सोचता है की गरुण तो अपने स्वामी विष्णु समेत मेरी ताकत को जनता है, कुछ पास आने पर रावण ने उसे पहचान लिया , और ओला यह तो बूढ़ा जटायु है, यह सुनते ही गिद्ध क्रोध में रावण की तरफ दौड़ा , और बोला रावण मेरा एक सिख सुन जानकी जी को छोड़कर कुशलपुरवक अपने घर जा नहीं तो श्री राम के गुस्से से तुम्हारा पूरा वंश बर्बाद हो जाएगा। रावण कुछ उतर नहीं देता , तब गिद्ध क्रोध करके दौड़ा और रावण का बाल पकड़ के उसे रथ से निचे उतार दिया तब रावण निचे पृथ्वी पर गिर पड़ा। गिद्ध सीताजी को एक तरफ बैठा कर लौटा , और चोंच से मारकर एक पल के लिए उसे मूर्छित कर दिया। तब रावण गुस्से में उठा और अपनी कतार से गिद्ध की एक पंख काट दिया , तब गिद्ध श्री राम को याद करके धरती पर गिर पड़ा।
फिर सताजी को रावण ने रथ पर बैठाया और तेजी से उड़ चला , सीता जी विलाप आकाश में रोती हुई जा रही थी , सीता जी ने देखा की कुछ बन्दर निचे पर्वत पर है तो उन्होंने राम का नाम लेकर वही पर अपना वस्त्र डाल दिया।
इस प्रकार वह सीताजी को ले जाकर अशोकवन में डाल दिया , इधर श्री राम जी ने छोटे भाई को आता देखकर बाह्यरूप में बहुत चिंता की और कहा हे भाई तुमने सीताजी को अकेले छोड़ दिया और मेरी आज्ञा का उलंघन करके यहाँ आ गए , उन्होंने आगे कहा राक्षसों का झुण्ड वन में घूमता है मेरा मन कहता है की सीता जी आश्रम में नहीं है , इतना कहते ही छोटे भाई श्री राम के पैर में गिर पड़े और कहा हे नाथ मेरा कोई दोष नहीं , लक्ष्मण सहित श्री राम गोदावरी के तट पर पहुंचे जहां उनका आश्रम था। वहा का हालत देख कर श्री राम भी आम इंसान की तरह श्री राम व्याकुल हो उठे , और व्याकुल हो उठे।
वे आज रस्ते में आने वाले हर एक जीव से पूछे जा रहे की उन्होंने कही सीता जी को देखा है , वे फूलों से वृक्षों से , पतियों से , काटो से , पक्षियों से , पशुओं से , सबसे पूछते है अपनी सीता जी के बारे में और कहते है की क्या उन्होंने देखा है सीता जी को। आगे जाने पर उन्हें गिद्ध गिरा हुआ मिला जिसका पंख रावण ने कट दिया था , वह श्री राम का ही स्मरण कर रहा था। श्री राम ने उसके सर को स्पर्श किया तो उसने ाकलहे खोला और श्री राम का सुन्दर मुखड़ा देखकर उसे बहुत आनंद आया और सब पीड़ा ख़त्म हो गया। तब गिद्ध ने कहा हे श्री राम मेरी यह हालत रावण ने की है , और वही दुष्ट माता जानकी को अपने साथ ले गया है , गिद्ध बताता है की रावण सीता मैया को अपने साथ दक्षिण दिशा में ले गया है।
श्री राम जी ने कहा हे तात अपने शरीर को ऐसे ही बनाए रखिये , तो गिद्ध कहता है की श्री राम जो व्यक्ति मरते वक्त आपका नाम लेले ुासे सरे पपो से मुक्ति मिल जाती है और आप तो मेरे सामने है , अब मुझे किस चीज की कमी है, यह सुन के श्री राम के आँखो में आशु आ जाता है , और कहते है की हे तात अब मैं आपको क्या दू आपने सब कुछ पा लिया , जो दूसरों की हित करता हैो उसके लिए किसी चीज की कमी नहीं रहता , आप तो सब कुछ पा चुके है।
हे तात आप पिताजी से जाकर सीता हरण की बात ना बताए , अगर मई राम हु तो रावण स्वयं सपरिवार जाकर पिताजी से यह बात बताएगा। जटायु ने गिद्ध का शरीर त्यागकर हरी का रूप धारण किया , उसने सुन्दर आभूषणो से जड़ित वस्त्रों को पहन लिया और कहने लगा हे राम आपकी जय हो, आपकी जय हो। इस तरह से गिद्ध ने अखण्ड भक्ति का वर मांगकर श्री हरी के परमधाम पहुंच गया।
फिर आगे दोनों भाई चले सीता जी को खोजने , आगे वन की सघनता बढ़ती जाती है। रस्ते में उन्होंने कबन्ध राक्षस को मर डाला , उसने अपने अपने शॉप की सारी बात बताई , उसने बताया की उसे दुर्वासा जी ने शप दिया था। वह कहता है की अब आपके दर्शन से मेरे सरे पाप मीट गए। उससे श्री राम बताते है जो भी ब्रह्मण कुल से द्रोह करता है वह मुझे नहीं सुहाता है। और जो ब्राह्मणो की सेवा दिल से करता है उसे स्वयं ही ब्रह्मा विष्णु और संकर जी मिल जाते है। वह भी तर गया और गन्धर्व शरीर पाकर आकाश में उड़ चला।
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