Friday, 1 April 2016

श्री राम का ऋषि अत्री तथा अनसुइया मिलन

चित्रकुट मे रहते हुए प्रभु श्री राम ने बहुत से लिलाओ को अंजाम दिया Ι 43667_Labels-God-Wallpapers-Lord-Rama_1024x768फिर प्रभु को लगा की अब सब लोग यहा पर मुझे जान गये हो तो प्रभु ने अब चित्रकुट से जाने को सोचा इस्लिये दोनो भाइ ने ऋषि मुनियो से विदा लेके वहा से चले Ι
वहा से सिधे प्रभु ऋषि अत्री जी के आश्रम जा पहुचे प्रभु का आगमन सुनकर ऋषि दौड कर उन्हे लेने चल, उन्हे दौडते हुए देख श्री राम भी तेजी से चले और आगे आकर ऋषि को दंडवत करने लगे जिसे देख कर मुनि ने तुरंत उन्हे उठा कर गले लगा लिया, उसके उपरांत मुनि उन्हे अपने आश्रम मे ले गये और प्रभु का पुजा कर उन्हे खाने के लिये कन्द मुल और फल इत्यादि दिया Ι
प्रभु को बैठा देखते हुए ऋषि बोले हे प्रभु आप तिर धनुष धारण करने वाले तिनो लोको के स्वामी है, सुर्यकुल के भुषण और महादेवजी के धनुष को तोडने वाले है, मुनियो और संतो को रखवाले और राक्षसो का नाश करने वाले है, हे प्रभु आप कामदेव के शत्रु और असुरो के समुहो को नाश करने है Ι आगे कहते है की हे लक्षमण जी और माता सिता मै आपलोगो को भी भजन करता हु, आगे कहते है की हे जानकीपती और पृथ्वी के रखवाले मै आपको नमस्कार करता हु, हे प्रभु आप मुझे अपने चरणो की भक्ती का आशिर्वाद दे फिर उसके बाद सिता जी ने अनसुयाजी ( ऋषि अत्री जी की पत्नी )  के पैर छुकर उनका उनसे मिली Ι ऋषि [पत्नी को बहुत खुशी हुई और उन्होने सिता जी को अपने पास बैठा लिया और उन्हे ऐसे दिव्य वश्त्र दिये जो नित्य नये निर्मल और सुहावने बने रहते है, फिर ऋषि मुनी ने उनके बहाने मधुर वणी से स्त्रीयो के कुछ धर्म बखानकर कहने लगी Ι वे कहती है के हे सिता जी भाइ बहन मा पिता सब सुख देने वाले है, परंतु पती के सामान और कोइ नही है , वह स्त्री अधर्मी होती है जो अपने पती की सेवा नही करती है Ι धैर्य, धर्म, मित्र और स्त्री की परीक्षा समय पर ही होती है, पती का अपमान करने से पत्नी यम्पुरी मे भाती भाती के दुख पाती है, वे आगे बताती है की इस जगमे चार प्रकार के पतीव्रताए होती है परंतु जो स्त्री अपने पती के अलावा किसी और को सपने मे भी ना लाये Ι आगे कहती है हे सिता सुनो स्त्री तो जन्म से ही अपवित्र है परंतु पति की सेवा करके वह शुभ हो जाती है, हे सिता सुनो तुम्हारा तो नाम लेके ही स्त्रिया पतिव्रता धर्म का पालन करेगी, और तुम तो श्री राम को प्राणो के सामान प्रिय हो, यह पतिव्रता का कथा मैने संसार के हित के लिये कहा हैΙ जानकी जी ने सुनकर परम सुख पाया आदरपुर्वक उनके चरणो मे सिस नवाया Ι
इतना सुनने के बाद श्री राम जी ने ऋषि के सामने सिस नवाकर आज्ञा और कहा की हे मुनि अगर आपकी आज्ञा हो तो मै अब दुसरे वन को चलु, और हे ऋषि मुनी आप मुझे भुलियेगा मत मेरे उपर अपना दया बरसाते रहियेगा, धर्म धुरन्धर श्री राम की ये बाते सुनकर ऋषि बोल; ब्रह्मा, शिवजी, और सनकादि परमार्थवादी जिनकी कृपा चाहते है हे रामजी आप वही निष्काम पुरुषो के प्रिय है और दिनो के बन्धु भगवान है इस प्रकार कोमल वचन बोल आप ही बोल रहे है, अब मुझे समझ आया लक्षम्ण जी की चतुराइ की क्यु वे आपकी सेवा मे रहते है उन्होने कहा मै किस प्रकार कहु आपलोग जाये हे प्रभु आप लोग तो अंतर्यामी है, ये कहते हि मुनि के आखो से जल बहने लगा श्री राम जी का सुन्दर यश कलियुग के पापो का नाश करने वाला है मन को दमन करने वाला है और सुख का मुल है , जो लोग इसे सुनते है और उनपर श्री राम जी खुश रहते है, यह कठिन कलि पापो का खजाना है इसमे ना धर्म है और ना ज्ञान है और ना योग है, ना जप है इसमे तो जो लोग सब भरोसो को छोडकर श्री राम को भजते है वे ही चतुर है Ι
मुनि के चरण कमलो मे सिर नवाकर देवता, मनुष्यो और मुनियो के स्वामी श्री राम जी वन को चले, आगे श्री राम जी है और उनके पिछे छोटे भाइ लक्ष्मण जी है, दोनो ही मुनियो के सुन्दर भेष मे शोभित हो रहे है, दोनो के बिच मे माता सिता जी चली जा रही है, जहा जहा श्री राम चले जाते है वहा वहा उनके उपर बादल चले जाते है Ι  आगे जाते हुए रास्ते मे विराध राक्षस मिला, उसके सामने आते ही प्रभु ने उसे मार गिराया, श्री राम के मरते ही वह तुरंत सुन्दर दिव्य रुप धारण कर लिया, उसे देखकर श्री राम जी ने तुरंत अपने प्रिय धाम भेज दिया Ι
समाप्त

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