Friday, 1 April 2016

चित्रकुट मे श्री राम

सुन्दर वन और तालाब देखते हुए प्रभु राम और सिता जी और लक्षमण तिनो महर्षी वाल्मिकी के आश्रम मे पहुच गये यह सुनते ही की श्री राम  मेरे आश्रम आये हुए है महर्षी उन्हे लेने खुद आगे आते है श्री राम चन्द्र जी ने उन्हे दंड्वत किया तो मुनि ने उन्हे आशिर्वाद दिया और सम्मान पुर्वक उन्हे अन्दर ले गए, और उनके लिय्ले सुन्दर फल, कन्द मुल इत्यादि मंगावाया गया तब मुनि ने उन्हे विश्राम का स्थल भी बता दिया सब लोग एक साथ मुनि के आश्रम मे बैठे है, तब राम ने कहा हे मुनि आप तो त्रिकालदर्शी है आप को तो सब पता है जिस प्रकार से रानी केकैई ने वनवास दिया वह कथा कह सुनाया I

फिर उन्होने कहा की पिता की आज्ञा और माता का हित और भाइ भारत का राजा होना और आपका दर्शन होना यह सब मेरे पुण्यो का ही प्रभाव है, हे मुनी आपके दर्शन मात्र से मै धन्य हो गया, हे मुनि अब आप ही वह स्थान बताइये जहा मै जाकर कुटी बनाकर रहु, यह सुनते ही मुनि बोले आप वेद की मर्यादा के रक्षक जगदीश्वर है और जानकीजी आपकी माया और लक्षमण जी शेष जी है देवताओ के कार्य के लिये आप राजा का शरीर धारण कर और रक्षसो का सन्हार करने के लिये चले है और आओ मुझसे प्पुछते है की मै कहा रहु, आप तो ब्रह्मा, विष्णु और महेश को भी नचाने वाले है, आप जो कुछ करते है वह सब उचित और सत्य है, और आप मुझसे पुछते है की मै कहा रहु, परंतु आप मुझे ये बता दे आप कहा नही रहते तब मै आपको रहने के लिये स्थान बता दु, यह सुनकर और रहस्य उजागर होते देख श्री राम ने मुस्कुरा दिया, फिर उन्होने कहा हे राम सुनिये मै आपको वह स्थान बता देता हु जहा आप लक्षमण जी और माता सिता के साथ जाकर बसिये है, फिर मुनि ने कहा हे सुर्यकुल के स्वामी सुनिये सुनिये मै इस वक्त के लिये आपको आश्रम बताता हु, आप चित्रकुट पर्वत पर जाकर रहियेI

तब सिता जी और भाइ लक्षमण सहीय राम जी ने आकर मंदाकिनी नदी मे स्नान किया श्री राम चन्द्र जी ने कहा हे लक्षमण यह बडा हे सुन्दर घाट है अब यही  कही ठहरने कि व्यवसथा करो तब लक्षमण जी ने पयस्विनी नदी के उचे किनारे को देखा उसके चारो ओर धनुष के जैसा नाला बना हुआ था नदी मन्दाकिनी उस धनुष की डोरि बनी हुइ थी, इस स्थान को लक्षमण ने दिखाया, जब देवताओ को पता चला श्री राम यहा बसने वाले है तो उन्होने विश्वाकर्मा क लेकर भिलो और कोलो का रुप धारण कर घास फुस का ऐसा सुन्दर कुटिया बनाया जो अति सुन्दर था, उस समय देवता, नाग, किन्नर, सब वहा आये श्री राम्ने सब को प्रणाम किया देवताओ ने फुल बरसाया और देवता कहने लगे हे प्रभु आपको देखकर हम धन्य हुए, और सबने अपने अपने दुख और सुख सुनाए फिए विनती जी और राम से आश्वाशन भी पायाI

श्री राम चित्रकुट मे आ गये है यह सुनकर बहुत से ऋषि आये उन्हे देखकर राम ने दंडवत किया, मुनिगण श्री राम को गले लगा लिया, फिर सब से मिल के श्री राम ने सब मुनियो को विदा किया, सब मुनियो ने कहा की हमने पुरे जंगलो को देखा है हे नाथ अगर आपको आवस्यक्ता पडे तो हम से कहने मे मत सकुचाइयेगा यह कहकर मुनि लोग विदा होते है, जब जब श्री राम जी अयोध्या को याद करते है उनके नेत्रो मे जल भर आता है, परंतु फिर कुसमय जानकर संतोष कर लेते है, इधर लक्षमण जी श्री राम जी और माता सिता जी का ऐसा सेवा करते है जैसे कोइ मनुष्य अपने शरिर अपने शरिर का करता हैI

यह समाचार जब कोलो, और भीलो ने पाया तो उनके खुशी का ठिकाना नही रहा, सारे दोनो मे फल इत्यादि भेट लेकर चले सबने भेट देकर आशिर्वाद पाया, सबने यही कहा हे नाथ आपने जहा निवास किया है यह परम उतम जगह है यहा हम आपकी रक्षा प्रत्येक जिव जंतुओ से करेंगे हम कुटुम्ब समेत आपके सेवक है इस्लिये हे नाथ हमे आज्ञा देने मे संकोच ना किजियेगा इन सब्के बाद श्री राम ने कोमल वचन बोल कर उन सब भीलो को वहा से रवाना किया वे सिर नवा कर चले, इस वन मे आके रहते ही वन के जिव जंतुओ का भी भाग्य खुल गया अब हर तर्फ जब्गल मे खुशिया ही खुशिया फैल गया है सब जिव जन्तु आपस मे सिर्फ श्री राम की ही बाडाइ करेते है, लक्षमण जी ऐसे श्री राम और माता सिता कि सेवा मे लगे है कि उन्हे सपने मे भी अयोध्या कि याद नही आता, और सिता भी प्रभु राम के साथ बहुत खुश है, पति श्री राम्के साथ सिता को घास कि कुटिया भी प्यारा लगता है, सिता जी और लक्षमण को जिस प्रकार खुशी मिले श्री राम जी वही करते जब जब श्री राम जी अयोध्या को याद करते तब तब उनके नेत्रो मे जल भर जाता किंतु फिर कुसमय सोचकर खुद को धिरज बन्धाते है, और लक्षमण और सिताजी से पवित्र कथाये कह कर उन्हे भी आनन्दित करते रहतेI

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