Friday, 1 April 2016

श्री राम और मुर्ख जयंत

               देवराज इन्द्र के पुत्र का नाम जयंत था उसे पता नही क्या सुझा उसने श्री राम के ताकत का अन्दाजा लगाने का तय किया Ι उसे ये नही पता था की श्री राम कहा इस दुनिया के मालिक है और वह मात्र एक देव है उसकी बराबरी दुर दुर तक भगवान राम से नही की जा सकती है Ι लेकिन क्या कर सकते है होनी को कौन रोक सकता है और अगर कोइ खुद मौत को बुलाये तो कोइ नही रोक सकता वही हालत जयंत की भी थी Ι

               एक बार भगवान राम जंगल से चुने हुए फुलो से हार बनाकर माता सिता को पहना रहे थे उसी वक्त जयंत ने भगवान राम के ताकत का परीक्षा लेने की ठानी उसने तुरंत कौवा बनकर माता सीता के पैर मे जा चोच मार दिया जब माता सिता के पैरो से खुन निकलने लगा तो भगवान राम को पता चला Ι तब उन्होने सिक का धनुष बनाया और उसके उपर चला दिया Ι सिक का तीर उसके पिछे चल दिया जब उसने यह देखा तो भाग चला और भाग कर अपने पिता देवराज इन्द्र के पास जा पहुचा और जाकर सब बात बताइ यह सुनकर उसके पिता ने तुरंत वहा से यह कह कर भगा दिया की भगववान राम का दुशमन मेरा भी दुशमन है यहा से तुरंत निकल जाओ Ι फिर वह वहा से भागकर भगवान विश्णु के पास जा पहुचा लेकिन वहा भी उसे कुछ सहायता नही मिला Ι और तिर था की उसका पिछा छोडने का तैयार नही था जयंत तुरंत भागकर ब्रह्म्लोक पहुचा और मदद की गुहार लगाई लेकीन ब्रह्मा जी ने तुरंत उसे यह कह कर भगा दी इस दुनिया मे भगवान राम से बडा कोइ नही है Ι फिर जयंत जान लेकर तुरंत महादेव के पास भागकर गया उसे लगा की उसे यही मदद मिलेगा लेकिन वहा जाकर देखा तो भगवान शंकर खुद भगवान राम के भक्त है उसे वहा भी कोइ मदद नही मिला अब जयंत अपना जान बचाकर इधर उधर भागने लगा Ι

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               उसकी यह दशा देखकर देवमुनी नारद को दया आया और उन्होने जाकर उसे समझाया भगवान राम ही है जो तुन्हे बचा सकते है Ι शरणागत का रक्षा करना उनके गुण है तुम उन्ही के पास जाओ और उनसे माफी मांगो जयंत को यह बात पसन्द आया वह तुरंत भागकर भगवान राम के चरणो मे जाकर गिर पडा रोकर माफी मागने लगा और कहने लगा की हे प्रभु आपका जन्म ही हुआ है शरणागत की रक्षा करने के लिये मेरी गलती का इतना बडा सजा ना दे मै माता सिता से माफी मांगता हु हे प्रभु आप मुझे माफ करे Ιहे प्रभु मुझे मेरे किये का सजा मिल चुका है हे प्रभु अब मेरा रक्षा करे Ι

             उसकी विनती सुन कर भगवान राम को दया आया लेकिन उसने द्रोह किया था अतः उसे भगवान उसके किये का सजा सिर्फ सिर्फ एक आख से अन्धा कर उसे काना बनाकर छोड दिया, बल्की उसके इस कार्य के लिये उसका वध करना चाहिये था, लेकिन भगवान राम के दयालु होने का हि परीणाम था की भगवान ने उसे काना कर के छोड दिया Ι

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