Friday, 1 April 2016

जनकपुर

(फोटो मे दिख रहा चित्र श्री जानकी मन्दिर है)Janki_Mandir

दोनो भाइ मुनी के साथ चले और गंगा नदी किनारे पहुच कर स्नान किया, वहा पर मुनी ने दोनो भाइयो को वह कथा सुनाया की किस प्रकार गंगा नदी पृथ्वी पर आयी थी I श्री राम भाइ के साथ जनकपुर पहुचे तो वहा का सोभा देखकर खुश हुए  नगर हर प्रकार की सुख सुविधाओ का ढेर था , नदीया और सरोवर भी थी  कुओ की कमी ना थी  जिसका ध्यान जहा जाता वहा ही रह जाता था,  सारे गलीया सडक और चौराहे सुन्दर बने हुए थे  सब घर सुन्दर और चित्रकारियो से भरे हुए थे   महल मे सोनी जडीत चदर लगे हुये थे  राज्महल के सारे दर्वाजे सुन्दर थे  यही नही व्हा के मंत्री और राज महल मे काम कर्ने वले करमचारी सरे ईमान्दार है  I

जब राजा को पता चला तो वे दौड कर आये और मुनी के चरणो पर अपना सर रख कर प्रणाम किया मुनी ने कुशल मंगल पुछ कर राजा को बैठाया  उसी समय दोनो भायी बगीचा देखकर आकर खडे हो गये  जब श्री राम आये तो सारे उपस्थीत लोग उठकर खडे हो गये I

राजा ने देखते ही मुनी से प्रश्न कीया की हे मुनी कही ये बालक भगवान के रुप तो नही है  ही मुनी आप मुझ्से कुछ ना छीपाये कहकर विनती किया  इन बातो को सुनकर मुनी ने कहा आपका बात मिथ्या नही हो सकता राजन ये दोनो बालक वही परम ब्रह्म रुप है जो जगत के स्वामी है  ये राम और लक्ष्मण ओनो भाइ श्रेश्ठ है दोनो ने असुरो का सन्हार कर मेरे यज्ञ का रक्षा किया है  राजा बार बार प्रभु को देखते है उनका नजर ही नही हतता है  एक सुन्दर महल मे ले जाकर राजा ने दोनो भाइयो को लेजाकर ठहराया और सब प्रकार से पुजा अर्चना कर वहा से विदाई लेकर वहा से चले  दोनो भाइ खाना खाकर मुनीयो के साथ बैथे हुए थे  उस वक्त भाइ लक्ष्मण के मन मे ललसा हो रहा था जनकपुर देखने को लेकीन बडे भाइ के डर से कुछ बोल नही पा रहे थे  तब श्री राम जी उनके मन की बात जांनकर मुनी से बोले हे प्रभु लक्ष्मण इस नगर को देखना चाहते है अगर आपकी की इजाजत हो तो इन्हे नगर घुमा लाउ  यह सुनते ही मुनी ने आग्या प्रदान कर दियाI

दोनो भाइ जब चले तो उनके पिछे सारे नगर के बालक चल दिये दोनो भाइयो ने गेरुवा वश्त्र पहन रखा था  और कमर मे तरकश बान्ध रखे थे जिसमे धनुष और बाण था सारे नगर वासीयो ने अपना काम धाम छोडकर घरो से भागकर निकले दोनो भाइयो को देखने लिये हर तरफ चाहे स्त्री हो या पुरुष सब दोनो भाइयो की दडाइ किये जा रहे थे I

          कुछ स्त्रीया आपस मे बात करती है हे सखी ये श्री राम है जिनके चरणो के धुली से अहल्या भी तर गयी थी तो क्या बिना धनुष तोडे रहेंगे मुझे तो देखके लगता है की यही धनुश तोडने वाले है दुसरी भी हा मे हा मीलाती है और राम की बखान करने मे लग जाती है  दोनो भाइ नगर के पुरब ओर गये जहा धनुषयज्ञ ए लिये मंच बना था चारो ओर सोने के बडे बडॆ मंच बने थे जहा सारे राजा आकर बैठते  नगर के बालक उचीत शब्दो को बोलकर राम के अंगो को छु लेते और उनके कोमल अंगो का गुङगान करते थे  ऐसे ही करते करते दोनो भाइयो को देर हो गया, दोनो डरते हुए मुनी के पास गये और क्षमा याचना की फीर रात्री भोज करके दोनो गुरु का पैर दबाने लगे जब गुरु सोगये तो लक्ष्मण ने बडे भाइ का पैर दबाना शुरु किया फिर राम का आज्ञा पाकर लक्ष्मण भी सो गये गुरु के जगने के पहले भी जगकर और नित्य क्रिया से निव्रित होकर गुरु के पुजा का समय होने को सोच बाग से फुल लाने गुरु का आज्ञा पाकर चलेI

उधर ही बाग मे अपनी माता का आज्ञा पाकर सीताजी सखियो के साथ गिरिजा (पार्वती) जी की पुजा करने आयी थी जब वे पुजा करने आयी थी तभी एक सहेली अकेले बाग घुम रही थी की उसकी नजर दोनो भाइयो पर पडी  उसकी नजर पडते ही वो दोनो की दिवानी हो गयी और सीताजी के पास जाकर उन दोनो भाइयो का बखान करती है  उसकी बात सुनकर सीताजी भी उत्सुकता वस अपने सबसे प्यारी सखी को आगे करके चली जाती है और नारद के कहे हुए वचनो को याद करती है  उधर श्री रा के कानो मे कंगन और पायल की गुंज सुनाइ देती है  प्रभु उसी ओर मुख करके है तो सीताजी को पाते है उन्हे देखकर राम लक्ष्मण से कहते है की यह वही सीता जी है जिनके लिये राजा जनक ने धनुष यज्ञ रखा है, हे लक्ष्मण देखो कैसे सीताजी पुरे उपवन को प्रकाशमान करती हुइ चली जा रही है उधर सीताजी ब्याकुल हुए इधर उधर देखे जा रहे थी किई कहा राम दिखायी दे , पर राम दिखायी नही दे रहे थे तब सखीयो ने लताओ के ओट से श्री राम को दिखाया उन्हे देखते ही सीताजी राम के प्यार मे डुब गयी तब पिता का प्रण उन्हे याद आया और वे खुद को अपने पिता के अधीन सोच कर  राम को अपने ह्रीदय मे रख वहा से चल पडी  फिर से सीताजी भवानी मन्दीर गयी और प्रार्थना करने लगी और अपना डर उनके सामने जाहीर करती है और उनसे प्रार्थना करती है और वीलाप करती है उनकी ये दशा देख गिरीजा जी के गले का माला खिसकता है जिसे प्रसाद समझ कर जानकी जी अपने सर मे लगती है  और उसी वक्त गिरीजा क मुरती मुस्कुरा पडा और गीरीजा जी कहने लगी की नारद के कहे हुए वचन कभी असत्य नही होते तुम्हे वही वर मिलेगा  इस प्रकार गीरीजा जी का आशिर्वाद सुनकर सीताजी महल को चलीI

दोनो भाइ फुल लेकर गुरु के पास चले गये  राम ने जाते ही सारे मन की बात गुरु से बता दी गुरु ने पुजा अर्चना करने के बाद दोनो भाइतो को आशिर्वाद दिया की आप दोनो का मनोरथ पुरा हो गुरु के आशिर्वाद को सुनते ही दोनो भाइ खुश हो जाते है  फिर मुनी प्रचीन कथाये सुनाना प्रारम्भ करते है जिससे दिन जल्दी खतम हो जाता है I

        उधर पुर्व दिशा मे चन्द्रमा उदित हुआ तो श्री राम ने अपनी सिता का तुलना चन्द्रमा से की लेकिन तुरंत ही उन्हे चन्द्रमा मे अत्यंत कमीया दिखायी देती है जिसपर प्रभु कहते है की हे चन्द्रमा मैने तुमसे अपनी सीता क तुलना करके बहुत बडा पाप किया है क्यु की तुम तो कही से भी सीता जैसे सुन्दर नही हो तुम्हारे अन्दर तो दाग है और तुम घटते बढते हो , फिर तुम्हारी तुलना सीता जी से कैसे की जा सकती है तुम्हारे अन्दर तो बह्हुत अवगुण है , फिर गुरु के पास चले और उअनकी आज्ञा पाकर सोने चले सुबह उठकर लक्ष्मण से कहते है की देखो समस्त ससार को सुख देने वाला सुर्योदय हुआ है , फिर लक्ष्मण जी काहते है हे प्रभु जैसे सुर्योदय होते ही सारे ताराओ क प्रकश फिका पड गया उसी ठिक उसी प्रकार आपके आने से सारे राजओ का बल फिका पड गया है यह बात सुनते ही प्रभु मुस्कुरा देते है  I

         फिर प्रभु नित्यक्र्मो से निव्रित होकर स्नान कर गुरु के चरणो मे सिर झुकाया तबतक जनक जी ने तुरंत शतकानन्द्जी को बुलाया और  उन्हे तुरंत ही त ही मुंनी विश्वामित्र जी के पस भेजा  शतकानन्द्जी जी तुरंत आकर जनक जी के की बात बताया फिर मुनी ने खुश होकर दोनो भैयो को बुलया  श्री राम शतकानन्द्जी के चरणो मे शिश झुकाया  त्ब मुनी ने कहा चलो राजा जनक ने बुलाव भेजा हि चलो चल कर देखते हैI

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