Friday, 1 April 2016

देवी अहिल्या का उद्धार

एक दिन मुनि विश्वामित्र ने प्रभु से धनुष यज्ञ कि बात बताइ तो प्रभु खुश होकर चलने को तैयार हुए , प्रभु  भाइ लक्ष्मण के साथ तैयार होकर धनुष यज्ञ देखने चले ,जाते हुए रास्ते मे आश्रम दिखाइ दिया, उस आश्रम मे ना कोइ पशु था ना हि कोइ पक्षी उत्साह पुर्वक प्रभु ने मुनि से पुछा , तो मुनि ने अहिल्या कि पुरी कथा बाताइI

                 विश्वामित्र जी ने बताया, यह स्थान कभी महर्षि गौतम का आश्रम था। वे अपनी पत्नी के साथ यहाँ रह कर तप करते थे। एक दिन जब गौतम ऋषि आश्रम के बाहर गये हुये थे तो उनकी अनुपस्थिति में इन्द्र ने गौतम ऋषि के वेश में आकर अहिल्या से प्रणय याचना की। यद्यपि अहिल्या ने इन्द्र को पहचान लिया था तो भी यह विचार करके कि मैं इतनी सुन्दर हूँ कि देवराज इन्द्र स्वयं मुझ से प्रणय याचना कर रहे हैं, अपनी स्वीकृति दे दी। जब इन्द्र अपने लोक लौट रहे थे तभी अपने आश्रम को वापस आते हुये गौतम ऋषि की दृष्टि इन्द्र पर पड़ी जो उन्हीं का वेश धारण किये हुये था। वे सब कुछ समझ गये और उन्होंने इन्द्र को शाप दे दिया। इसके बाद उन्होंने अपनी पत्नी को शाप दिया कि रे दुराचारिणी! तू हजारों वर्षों तक केवल हवा पीकर कष्ट उठाती हुई यहाँ राख में पड़ी रहे। जब राम इस वन में प्रवेश करेंगे तभी उनकी कृपा से तेरा उद्धार होगा। तभी तू अपना पूर्व शरीर धारण करके मेरे पास आ सकेगी। यह कह कर गौतम ऋषि इस आश्रम को छोड़कर हिमालयपर जाकर तपस्या करने लगे।                       

                 देवी अहिल्या शापवश बडे धिरज से प्रभु कि इंतेजार मे थी, प्रभु ये जानते हि उस पत्थर पर पर अपने चरण रखे, चरण का स्पर्श होते हि अहिल्या पत्थर से अपने रुप मे प्रकट हो गयी, और प्रभु को प्रणाम किया, प्रभु दर्शन से इतनी खुश हुइ कि उनके आखो स्रे आसु आने लगा, देवी ने कहा कि हे प्रभु जो मुनि ने किया शाप देकर अछा किया तभी तो आज आपके दर्शन हुए, बहुत प्रकार से प्रभु से विनति और अराधना करने के बाद देवी अपने पति के पास चली I

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